नई दिल्ली: सूफी परंपरा और गंगा-जमुनी तहज़ीब का बेहतरीन उदाहरण हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह पर बसंत पंचमी का खास जलसा धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर दरगाह को पीले फूलों से सजाया गया, और अकीदतमंदों की भारी भीड़ उमड़ी।
🔹 बसंत पंचमी का सूफी कनेक्शन: यह परंपरा हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के समय से चली आ रही है, जब उनके सबसे प्रिय शागिर्द अमीर ख़ुसरो ने पीले फूल लेकर उन्हें खुश करने की कोशिश की थी।
🔹 पीले कपड़े और फूलों का नज़ारा: दरगाह पर हर ओर बसंत की छटा बिखरी हुई थी, लोग पीले कपड़े पहनकर हाज़िरी दे रहे थे।
🔹 कव्वालियों का आयोजन: इस मौके पर सूफियाना कलाम और कव्वाली की महफ़िल भी सजी, जहां अकीदतमंदों ने इश्क़-ए-हक़ीक़ी और सूफियाना रंग में डूबकर बसंत का जश्न मनाया।
📌 हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह पर बसंत पंचमी क्यों खास है?
📍 यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसमें हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश छिपा है।
📍 अमीर ख़ुसरो ने पहली बार बसंत पंचमी पर अपने गुरु को पीले फूल भेंट किए थे, जो आज तक एक रस्म के तौर पर निभाई जाती है।
📍 इस मौके पर कव्वाली और दरगाह की ख़ास सजावट इसे और ख़ूबसूरत बना देती है।
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📌 FAQs:
Q1: हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह पर बसंत पंचमी क्यों मनाई जाती है?
A: यह परंपरा अमीर ख़ुसरो द्वारा शुरू की गई थी, जब उन्होंने अपने गुरु हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया को बसंत के पीले फूल भेंट किए थे।
Q2: बसंत पंचमी के मौके पर दरगाह पर क्या-क्या होता है?
A: इस मौके पर दरगाह को पीले फूलों से सजाया जाता है, अकीदतमंद पीले कपड़े पहनते हैं, और कव्वाली की महफ़िलें सजती हैं।
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